मुजफ्फरपुर, पूर्णिया या भागलपुर के लिए वादा किए गए हवाई अड्डे कहां हैं?

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हवाई अड्डे

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प्रधानमंत्री मोदी जी आज दरभंगा, बिहार के दौरे पर हैं, जिसको लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भाजपा के कार्यों को लेकर घेरते हुए X पोस्ट में कहा “नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री आज दरभंगा में हैं। उनसे चार सवाल है – 1. मुजफ्फरपुर, पूर्णिया या भागलपुर के लिए वादा किए गए हवाई अड्डे कहां हैं? 2. दरभंगा एम्स में इतनी देरी क्यों हुई? 3. बीजेपी ने मैथिली भाषा की उपेक्षा क्यों की? 4. क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री सोचते हैं कि जाति जनगणना विभाजनकारी है?

मुजफ्फरपुर, पूर्णिया या भागलपुर के लिए वादा किए गए हवाई अड्डे कहां हैं?

नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने 18 अगस्त, 2015 को पूर्णिया में एक हवाई अड्डा का वादा किया था। छह साल हो गए हैं और इस बीच नीतीश कुमार तीन बार यू-टर्न ले चुके हैं, लेकिन उनकी सरकार ने अभी तक वादा पूरा नहीं किया है। 2019 की रैली में मोदी जी ने मुजफ्फरपुर में पताही हवाई अड्डा को खोलने का वादा किया था। 2023 में, गृह मंत्री अमित शाह ने भी पताही हवाई अड्डे पर परिचालन शुरू करने का वादा किया था, वहीं भाजपा ने दिवाली 2023 तक पूरी तरह से चालू हवाई अड्डे का वादा किया था।

लेकिन, मार्च 2024 में एएआई ग्राउंड टीम ने पाया कि इसकी भूमि की चारदीवारी टूटी हुई है, और भैंसें रनवे पर घूमती हैं। आख़िर सरकार 10 वर्षों से क्या कर रही है? मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और भागलपुर के साथ उन शहरों में शामिल हो गया है, जिन्हें हवाई अड्डों की ज़रूरत है और वे इसके हकदार भी हैं, लेकिन भारतीय जुमला पार्टी ने उन्हें केवल झूठे और टूटे वादे दिए हैं। नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने इस विषय पर बिहार की जनता से बार-बार झूठ क्यों बोला?

दरभंगा एम्स में इतनी देरी क्यों हुई?

दरभंगा में एम्स की घोषणा तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-2016 के केंद्रीय बजट में की थी। स्थानीय लोग तब से अस्पताल का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन काम शुरू होने में ही नौ साल लग गए। ऐसा प्रतीत होता है कि देरी इसके लिए राजनीतिक श्रेय लेने की केंद्र सरकार की ज़िद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह सुनिश्चित करने की साज़िश के कारण हुई कि उन्हें इसका लाभ मिले। क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री इस देरी पर कुछ बोलेंगे?

बीजेपी ने मैथिली भाषा की उपेक्षा क्यों की?

पिछले 20 वर्षों में, भाजपा ने मैथिली भाषा के विकास, संरक्षण या इसे प्रमोट करने के लिए कुछ नहीं किया है। मैथिली एक अनुसूचित भाषा है, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। 1968 में राजभाषा संकल्प ने केंद्र और राज्यों को अनुसूचित भाषाओं के “पूर्ण विकास” के लिए “ठोस उपाय” करने के लिए बाध्य किया ताकि उनका तेज़ी से प्रसार हो और आधुनिक ज्ञान के संचार के प्रभावी साधन बनें। भाजपा ने केंद्र में अपने 10 साल और बिहार में 13 साल की सत्ता में इस संकल्प की पूरी तरह से अवहेलना की है।

उन्होंने प्राथमिक विद्यालयों में भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने से इंकार कर दिया। राज्य की मैथिली अकादमी एक टूटे-फूटे संगठन में बदलकर रह गई है, जिसके पास वर्षों से न तो कोई फंड है, न अध्यक्ष और न ही कोई कर्मचारी। नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और भाजपा ने इस भाषा की उपेक्षा क्यों की?

क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री सोचते हैं कि जाति जनगणना विभाजनकारी है?

कांग्रेस देशव्यापी सामाजिक और आर्थिक जाति जनगणना के लिए प्रतिबद्ध है और हमारी राज्य सरकार ने तेलंगाना में जनगणना कराना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और राजद के दबाव में, नीतीश सरकार को अक्टूबर 2023 में बिहार की जाति जनगणना के आंकड़ों को जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय “देश को जाति के नाम पर विभाजित करने” का आरोप लगाया। अपने पुराने/नए सहयोगी से हाथ मिलाने के बाद प्रधानमंत्री उनके द्वारा ज़ारी किए गए जाति आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के बारे में क्या सोचते हैं?

क्या वह इसे दशकीय जनगणना में आगे बढ़ाएंगे जो कि 2021 में होनी थी लेकिन अब आयोजित होने की संभावना है? और क्या वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और OBC के लिए आरक्षण पर मनमाने ढंग से लगाए गए 50% की सीमा को हटाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे?

भाजपा सरकार पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा उठाए गए सवालों के बारे में आप अपनी क्या राय रखते हैं हमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें। इस तरह की ताजा न्यूज अपडेट पाने के लिए हमारी वेबसाइट को ध्यान में रखें।

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