जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए X पोस्ट में लिखा “नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री आज जम्मू-कश्मीर में हैं। 2018 में PDP-BJP सरकार के गिरने के बाद से, जम्मू और कश्मीर का प्रशासन उनकी ही केंद्र सरकार के पास है। ऐसे में नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री को अपने शासन को लेकर इन पांच सवालों का जवाब देना चाहिए।”
1. जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा?
जयराम रमेश ने लिखा “2018 के बाद से जम्मू-कश्मीर के लोगों की समस्याएं और विरोध दर्ज कराने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। यह क्षेत्र भाजपा-आरएसएस द्वारा नियंत्रित नौकरशाही का जागीर बन गया है। विशेष दर्जा समाप्त करके एक अजीब राजनीतिक स्थिति पैदा की गई है, चुनाव निलंबित हैं और एक हिस्सा यूटी में बदल दिया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने 11 दिसंबर, 2023 को कहा था कि जम्मू-कश्मीर को उचित समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा, लेकिन पांच साल बाद भी कोई समय सीमा स्पष्ट नहीं है। विधानसभा चुनाव में लगातार देरी के बाद, जम्मू-कश्मीर के लोग केंद्र के आश्वासन पर विश्वास नहीं कर रहे हैं।”
2. कल किश्तवाड़ में आतंकवादी हमलों में भारतीय सेना के दो जवानों के शहादत की नैतिक जिम्मेदारी कौन लेगा?
नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि आर्टिकल 370 हटाने से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है, लेकिन ज़मीनी हालात चिंताजनक हैं। 1 जनवरी 2023 से, पीर पंजाल रेंज में 35 सुरक्षा कर्मी और 8 निर्दोष नागरिक मारे गए हैं, जहां 2007-2014 के बीच कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं हुई थी। हाल के हफ्तों में आतंकवाद रियासी, कठुआ और डोडा जैसे शांत क्षेत्रों तक फैल गया है। पाकिस्तान से घुसपैठ बढ़ रही है और जम्मू-कश्मीर में असुरक्षा का माहौल है। प्रधानमंत्री की सरकार इस स्थिति को संभालने में क्यों विफल रही है?
3. केंद्र सरकार के प्रशासन में ड्रग्स की तस्करी में तेज़ी से वृद्धि क्यों हुई है?
आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण जम्मू में मादक पदार्थों की तस्करी में तेजी है। जम्मू की अंतर्राष्ट्रीय सीमा तस्करों का मुख्य क्षेत्र बन गई है, जिससे नशीले पदार्थों की खपत में पांच वर्षों में 30% की वृद्धि हुई है। 2019-2023 के बीच 700 किलोग्राम हेरोइन, 2,500 किलोग्राम चरस और 1 लाख किलोग्राम अफीम जब्त की गई, जिसका मूल्य 1,400 करोड़ रुपए है। जम्मू-कश्मीर नशीले पदार्थों की तस्करी का केंद्र बन चुका है। पूर्व डीजीपी दिलबाग सिंह के अनुसार, ड्रग्स का खतरा उग्रवाद से भी बड़ा है। केंद्र सरकार ने इस खतरे को रोकने के लिए क्या हासिल किया है?
4. सरकार कश्मीरी पंडितों का समर्थन करने में क्यों विफल रही है?
भाजपा ने हर चुनावी अभियान में कश्मीरी पंडितों के दुःख-दर्द का फ़ायदा उठाया है। लेकिन, सत्ता में आने के दस साल बाद भी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने समुदाय के लिए बिल्कुल कुछ नहीं किया है। समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक भी नहीं की है। इस समुदाय के परामर्श से, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने कश्मीरी पंडित युवाओं को कश्मीर घाटी में नौकरियां लेने के लिए 6,000 नौकरियों का रोज़गार पैकेज तैयार किया था। कश्मीरी पंडित समुदाय के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार का यह आखिरी बड़ा हस्तक्षेप है। समुदाय की घरवापसी के लिए राष्ट्रव्यापी सामाजिक और राजनीतिक सहमति है फिर भी मौजूदा सरकार के तमाम दावों के बावजूद कुछ नहीं हुआ है। क्या एक तिहाई प्रधान मंत्री समुदाय को केवल भाषण बाजी के मुद्दे के रूप में देखते हैं? उन्होंने पिछले एक दशक में उनके हितों की उपेक्षा क्यों की है?
5. 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर की आर्थिक स्थिति में गिरावट क्यों आई है?
जब 2019 में भाजपा ने अनुच्छेद 370 को हटाया, तो इसे “विकास और प्रगति” की राह में रुकावट बताया गया था। जनवरी 2021 की औद्योगिक नीति के बाद से 42 औद्योगिक क्षेत्रों में 84,544 करोड़ के प्रस्ताव मिले, लेकिन अब तक सिर्फ 414 इकाइयां पंजीकृत हुईं और ज़मीन पर वास्तविक निवेश केवल 2,518 करोड़ का हुआ है। बेरोजगारी दर 23.1% है, जो देश में सबसे अधिक है। सरकारी नौकरियों में भर्ती पेपर लीक और रिश्वत के कारण चार साल से अटकी पड़ी है। 60,000 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी 300 रुपए प्रतिदिन पर काम कर रहे हैं। क्या गृह मंत्री बताएंगे कि इस आर्थिक स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और कितनी नौकरियां पैदा की गई हैं?
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