इतिहास गवाह है सत्ता-विरोधी आंदोलनों से देश का पुनरुत्थान हुआ है- अखिलेश यादव

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जैसा कि आप सबको पता है कि विश्व के कुछ देशों में आपसी युद्ध चल रहें है और कुछ देशों में आंतरिक रूप से भी हिंसात्मक गतिविधियां भी चल रही है। जिसको लेकर सपा के प्रमुख और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी चिंता जाहिर की है। विश्व में चल रही अशांति को लेकर अखिलेश यादव ने X पोस्ट करके अपने विचार रखे। जिसमें उन्होंने विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों पर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। कहा कि ‘सांस्कृतिक समझ और सकारात्मक सोच से ही वैश्विक शांति संभव की जा सकती है।’

अखिलेश ने अपने विचार रखते हुए एक बडी X पोस्ट की कहा कि

विश्व इतिहास गवाह है कि विभिन्न देशों में सत्ता के खिलाफ, उस समय की कसौटी पर, सही-गलत कारणों से हिंसक जन क्रांतियाँ, सैन्य तख़्तापलट, सत्ता-विरोधी आंदोलन विभिन्न कारणों से होते रहे हैं। ऐसे में उस देश का ही पुनरुत्थान हुआ है, जिसके समाज ने अपने सत्ता-शून्यता के उस उथल-पुथल भरे समय में भी अपने देशवासियों की जान-माल व मान की रक्षा करने में जन्म, धर्म, विचारधारा, संख्या की बहुलता-अल्पता या किसी अन्य राजनीतिक विद्वेष या नकारात्मक, संकीर्ण सोच के आधार पर भेदभाव न करके सकारात्मक-बड़ी सोच के साथ सबको एक-समान समझा और संरक्षित किया है।

देश और नागरिकों की सुरक्षा का कर्तव्य

देश और देशवासियों की रक्षा करना हर देश का कर्तव्य होता है। सकारात्मक मानवीय सोच के आधार पर, एक व्यक्ति के रूप में हर निवासी-पड़ोसी की रक्षा करना भी हर सभ्य समाज का मानवीय-दायित्व होता है, फिर वह चाहे किसी काल- स्थान- परिस्थिति में कहीं पर भी हो।

विदेशी राजनीतिक हालात और आंतरिक प्रभाव

विशेष रूप से रेखांकित करने की एक बात इतिहास ये भी सिखाता है कि किसी और देश के राजनीतिक हालातों का इस्तेमाल जो सत्ता अपने देश में अंदर, अपनी सियासी मंसूबों को पूरा करने के लिए करती है, वो देश को आंतरिक और बाह्य दोनों स्तर पर कमज़ोर करती है।

वैश्विक राजनयिक मानक और सक्रिय विदेश नीति

कई बार किसी देश के आंतरिक मामलों से प्रभावित होने वाले, किसी अन्य देश द्वारा एकल स्तर पर हस्तक्षेप करना वैश्विक राजनयिक मानकों पर उचित नहीं माना जाता है, परंतु ऐसे में उस प्रभावित देश और उसके अपने सांस्कृतिक रूप से संबंधित व्यक्तियों की चतुर्दिक रक्षा के लिए, उस देश को अपनी मूक विदेश नीति को सक्रिय करते हुए, विश्व बिरादरी के साथ मिलकर साहसपूर्ण सकारात्मक मुखर पहल करनी चाहिए, जिससे सार्थक समाधान निकल सके। जो सरकार ऐसे में मूक-दर्शक बनी रहेगी, वो ये मानकर चले कि ये उसकी विदेश नीति की नाकामी है कि उसके सभी दिशाओं के निकटस्थ देशों में परिस्थितियाँ न तो सामान्य हैं और न उसके अनुकूल। इसका मतलब है कि ‘भू-राजनीतिक’ नज़रिये से उसकी विदेश नीति में कहीं कोई भारी चूक हुई है।
सांस्कृतिक- निकटस्थता के सूत्र से एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र को बांधकर आपसी समझबूझ और भाईचारे से ही विश्व के विभिन्न अशांत भू-खंडों में अमन-चैन लाया जा सकता है।

सकारात्मक सोच और शांति

सकारात्मक सोच से जन्मा सौहार्द एवं शांति ही मानवीय समृद्धि का मार्ग है।

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