विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है

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संसदीय प्रक्रिया

संसदीय प्रक्रिया

दोनों सदन की कार्यवाही काफी लम्बे समय से चल नहीं पर रही है, रोज सदन को स्थगित कर दिया जाता है, जिसको लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर लिखा “लोकतंत्र हमेशा दो पहियों पर चलता है। एक पहिया है सत्तापक्ष और दूसरा विपक्ष। दोनों की जरूरत होती है। सांसदों के विचारों को तो देश तब ही सुनता है जब हाउस चलता है। 16 मई 1952 को सभापति के रूप में राज्य सभा में पहले सभापति डॉ राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था कि ‘मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूँ।’ यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल में पूरी तरह खंडित हो गई।”

विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर लिखा “संसद प्रजातंत्र का पोषण घर है। संसद संसदीय मर्यादाओं का आईना है। संसद सत्ता की जबाबदेही निश्चित करने का स्थान है। जहाँ आज विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब राज्य सभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है। जहाँ संसद की मर्यादाओं तथा नैतिकता आधारित परंपराओं का हनन अब राज्य सभा में दिनचर्या बन गई है। जहाँ प्रजातंत्र को कुचलने तथा सत्य को पराजित करने की कोशिश लगातार व बदस्तूर जारी हैं।”

हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पोस्ट में आगे लिखा “हम संविधान के सिपाही तथा रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज़्यादा दृढ़ हो जाता है। हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं तथा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे।”

देश के लोगों के समक्ष 10 बिंदु रखूंगा

मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पोस्ट में लिखा “हालांकि इन्ही ताकतों ने मुझे आज संसद में सच्चाई बयाँ करने से रोक कर रखा, मैं देश के लोगों के समक्ष 10 बिंदु रखूँगा-

संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है

संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है। लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं। विपक्ष से बिना वजह authentication की मांग करते हैं, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को, मंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने देते हैं। वो कोई भी झूठ सदन में कह दें, कोई भी फेक न्यूज़ फैला दें, उन्हें कभी नहीं रोकते। लेकिन विपक्ष के सदस्यों को मीडिया की रिपोर्ट को भी प्रमाणित करने को कहते हैं। और ऐसा न करने पर उन पर कार्यवाही करने की धमकी देते हैं।

अधिकारों का दुरुपयोग

सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है। कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था।

विपक्षी नेताओं की आलोचना की

सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है। वो अक्सर भाजपा की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं।वो रोज़ ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है। उन्होंने इस महान पद का दुरपयोग करते हुए, पद पर आसीन होकर, अपने राजनीतिक विचारक – RSS की प्रशंसा की और यहाँ तक कहा कि “मैं भी RSS का एकलव्य हूँ” जो की संविधान की भावना से खिलवाड़ है।

प्रधानमंत्री को महात्मा गांधी के बराबर बताना

अध्यक्ष सदन में और सदन के बाहर भी सरकार की अनुचित चापलूसी करते दिखते हैं। प्रधानमंत्री को महात्मा गांधी के बराबर बताना, या प्रधानमंत्री की accountability की माँग को ही ग़लत ठहराना, ये सब हम देखते आए हैं। अगर विपक्ष वॉकआउट करता है तो उसपर भी टिप्पणी करते हैं, जबकि वॉकआउट संसदीय परंपरा का ही हिस्सा है।

सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के पार्ट्स expunge करते हैं

सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के पार्ट्स expunge करते हैं। यहाँ तक की नेता विपक्ष के भाषण के भी महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीक़े से और दुर्भावनापूर्ण रूप से expunge करने का निर्देश देते रहे हैं। जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों की बेहद आपत्तिजनक बातों को भी रिकॉर्ड पर रहने देते हैं।

विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं

सभापति ने रूल 267 के तहत कभी भी किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है। विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं। जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला बुला कर रूल 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं।

संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल इकतरफ़ा है

सभापति के कार्यकाल के दौरान संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल इकतरफ़ा है। ज़्यादातर समय केवल chair और सत्ता पक्ष के लोग दिखाए जाते हैं। विपक्ष के किसी भी आंदोलन को ब्लैकआउट कर देते हैं। जब कोई विपक्षी नेता बोलता है, तो कैमरा काफी समय के लिए चेयर पर रहता है। संसद टीवी के प्रसारण के नियम मनमाने ढंग से बदल दिए गए हैं। General Purposes Committee (GPC) की मीटिंग के बगैर बदल दिए हैं।

Public Importance के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं होती है

Short Duration Discussion और Calling Attention अब बहुत कम लगाए जाते हैं। UPA के वक्त हर हफ़्ते दो Calling Attention और एक short duration discussion लगता था। अब नहीं होता। Half an Hour Question, Statutory Resolution भी नहीं होते। सारे बिल भी Standing Committee को नहीं भेजते हैं। Public Importance के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं होती है।

सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं

सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं। Statues शिफ्ट करना हो या watch and ward की व्यवस्था बदलना हो, किसी के लिए मशविरा नहीं किया। Statue कमेटी की मीटिंग नहीं हुई। GPC की कोई मीटिंग नहीं हुई, Rules Committee की मीटिंग अब नहीं होती।

विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं

विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं। राज्यसभा में स्टेटमेंट पर स्पष्टीकरण की परंपरा थी, वो भी बंद कर दी है।

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